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पैगाम

दिल के हुजरे में ईक ख्याल जो सेहमा सा है।
कह दे वो सब कहर जो बरपा सा है।
कब तलक तू जीएगा औरों की खातिर।
जान ले जो कहीं तेरे जेहन में खोया सा है।

ये तेरे चेहरे पर घुटन के जो बयां से हैं।
दिल ओ दिमाग की रंजिश के निशां से हैं।
कब तलक उस चाहत को दबा रखेगा।
आस्तीनो में तो अब भी उसके निशां से हैं।

उम्र नादान है तेरी, हाँ वो भी तो मगरुर सा है।
पर उसके दिल में फिर भी तो तेरा सुरूर सा है।
वो तो कभी तुझसे पराया नहीं हुआ।
फिर तू कयूं उस से इस कदर नाराज सा है।

देख तौबा कर, खुदा भी तुझसे अब नाराज सा है।
जो तू कर रहा उस से वो भी मायूस सा है।
सर को सुकून हो तब, जब तू दिल की सुन ले।
सर ही ने शायद तेरे जेहन को छला सा है।

कभी ख्याल कर हर लम्हा कयूं बुझा सा है।
कोई है जो तेरे फिराक़ में रुला सा है।
तू कैसे उसके सीने पर सजा लेगा कफन।
वो शक्स जो जी रहा है वो मरा सा है।

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